भारत कोई धर्मशाला नहीं जो हर विदेशी शरणार्थी को दे शरण, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की कि “भारत कोई धर्मशाला नहीं है जो पूरी दुनिया से आने वाले शरणार्थियों को जगह दे।” यह टिप्पणी तब आई जब अदालत एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपनी सजा पूरी करने के बाद भारत में निर्वासन से सुरक्षा की मांग की थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा, “क्या भारत पूरी दुनिया के शरणार्थियों की मेजबानी करेगा? हमारी जनसंख्या पहले से ही 140 करोड़ है। यह कोई धर्मशाला नहीं है जहां हम सभी विदेशी नागरिकों को रख सकते हैं।”
यह मामला मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश से जुड़ा है जिसमें सात साल की सजा पूरी करने के बाद श्रीलंकाई नागरिक को तुरंत देश छोड़ने को कहा गया था। वह “अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1967 (UAPA)” के तहत दोषी ठहराया गया था। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि अगर उसे श्रीलंका वापस भेजा गया, तो उसके जीवन को गंभीर खतरा है। वकील ने बताया कि वह अब तक तीन साल से अधिक समय से हिरासत में है और अभी तक कोई निष्कासन प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।
इसके अलावा, उसकी पत्नी और बच्चे पहले से ही भारत में बसे हुए हैं। इस पर अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा, “किसी और देश जाओ।” सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए केंद्र सरकार के इस कदम का समर्थन किया कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा। –