पूर्व भारतीय निशानेबाज़ी कोच सनी थॉमस का 84 वर्ष की आयु में निधन; अभिनव बिंद्रा ने दी श्रद्धांजलि
पूर्व भारतीय निशानेबाज़ी टीम के मुख्य कोच और द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर सनी थॉमस का बुधवार को 84 वर्ष की आयु में हृदयगति रुकने के कारण निधन हो गया। उन्होंने केरल के कोट्टायम ज़िले के उज्झवूर स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।
सनी थॉमस ने वर्ष 1993 से 2012 तक भारत की राष्ट्रीय निशानेबाज़ी टीम के कोच के रूप में सेवाएं दीं। यह वह दौर था जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज़ी में तेज़ी से अपनी पहचान बनाई। उनके नेतृत्व में भारत ने कई उपलब्धियाँ हासिल कीं, जिनमें सबसे ऐतिहासिक थी — 2008 बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा द्वारा पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में देश का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतना।
अपने इस मार्गदर्शक को याद करते हुए अभिनव बिंद्रा ने सोशल मीडिया मंच ‘X’ पर लिखा:
“प्रोफेसर सनी थॉमस के निधन की खबर सुनकर बेहद दुख हुआ। वे केवल कोच नहीं थे, बल्कि एक सच्चे मार्गदर्शक, गुरु और पिता समान थे।
उन्होंने भारतीय निशानेबाज़ी में जो नींव रखी, वही हमारे अंतरराष्ट्रीय सफर की शुरुआत थी। मेरे करियर की शुरुआत में उन्होंने जो विश्वास और समर्थन दिया, वह अमूल्य था। सर, आपकी विरासत अमर है। विनम्र श्रद्धांजलि।”
एक समय के पांच बार के केरल स्टेट चैंपियन और 1976 के राष्ट्रीय चैंपियन सनी थॉमस ने अपने करियर की शुरुआत एक अंग्रेज़ी व्याख्याता के रूप में सेंट स्टीफन कॉलेज, उज्झवूर से की थी। लेकिन निशानेबाज़ी के प्रति जुनून उन्हें इस खेल में पूर्ण रूप से ले आया।
उनके कोचिंग कार्यकाल में भारत ने कई मील के पत्थर छुए — 2004 एथेंस ओलंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौर का रजत पदक (पुरुष डबल ट्रैप में), जो भारत का ओलंपिक में निशानेबाज़ी का पहला पदक था। उन्होंने विजय कुमार, गगन नारंग, जसपाल राणा और समरेश जंग जैसे खिलाड़ियों को भी प्रशिक्षित किया।
सनी थॉमस ने भारत की निशानेबाज़ी व्यवस्था को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने पिस्टल, राइफल और शॉटगन कोचिंग संरचनाओं को एकीकृत कर प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार कराया, जिससे एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत की सफलता बढ़ी।
सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने खेल से नाता नहीं तोड़ा और कोट्टायम के इडुक्की राइफल एसोसिएशन में एक शूटिंग रेंज की स्थापना की।
अपने पीछे वे पत्नी के.जे. जोसम्मा, पुत्र मनोज और सनील, तथा पुत्री सोनिया को छोड़ गए हैं।
एक सच्चे गुरु को विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी दी हुई सीखें आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।