थोक महंगाई दर मई में 15 महीने के उच्चतम स्तर 2.61 फीसदी पर
सब्जियों और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण थोक महंगाई में लगातार तीसरे महीने इजाफा हुआ है। थोक महंगाई दर मई में सालाना आधार पर उछलकर 15 महीने के उच्चतम स्तर 2.61 फीसदी पर पहुंच गई है। इससे पिछले महीने अप्रैल में यह 1.26 फीसदी थी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी आंकड़ों में बताया कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि की वजह से थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक महंगाई दर मई महीने में 2.61 फीसदी रही है। इससे पिछले साल मई में थोक महंगाई दर -3.61 फीसदी रही थी। अप्रैल में यह 1.26 फीसदी रही थी, जो 13 महीने का उच्चतम स्तर था। हालांकि, पिछले महीने मार्च में यह 0.53 फीसदी थी, जबकि फरवरी में थोक महंगाई दर 0.20 फीसदी थी।
मंत्रालय ने मई में थोक महंगाई बढ़ने की मुख्य वजह खाद्य वस्तुओं, खाद्य उत्पादों के निर्माण, कच्चे पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस, खनिज तेल और अन्य विनिर्माण की कीमतों में वृद्धि बताया है। आंकड़ों के मुताबिक खाद्य वस्तुओं की महंगाई मई में 9.82 फीसदी बढ़ी, जबकि अप्रैल में यह 7.74 फीसदी थी। मई में सब्जियों की महंगाई दर 32.42 फीसदी रही, जो अप्रैल में 23.60 फीसदी थी।
इसी तरह प्याज की महंगाई दर ((58.05 फीसदी रही, जबकि आलू की महंगाई दर 64.05 फीसदी रही। दालों की महंगाई दर मई महीने में 21.95 फीसदी रही है। इसके अलावा ईंधन एवं बिजली क्षेत्र में महंगाई 1.35 फीसदी रही, जो अप्रैल के 1.38 फीसदी से मामूली कम है। विनिर्मित उत्पादों की महंगाई 0.78 फीसदी रही है, जो अप्रैल में शून्य से नीचे 0.42 फीसदी थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक मई में खुदरा महंगाई दर 4.75 फीसदी रही थी, जो 12 महीने का निचला स्तर है। इससे पिछले महीने अप्रैल में खुदरा महंगाई दर घटकर 4.83 फीसदी पर थी।
WPI का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स कटौती के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है। जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।
महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।