कनाडा का भारत को G7 में आमंत्रण : मजबूरी या दुनिया के हित में जरूरी?
ना-ना करते हुए भी कनाडा को G7 सम्मेलन के लिए भारत को न्योता देना ही पड़ा। कनाडा द्वारा अंतिम क्षणों में भारत को G7 सम्मेलन में आमंत्रण देना इस वास्तविकता की स्वीकारोक्ति है कि भारत को अलग-थलग रखकर अब कोई भी अंतरराष्ट्रीय मंच न तो अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सकता है और न ही जटिल वैश्विक मुद्दों पर ठोस निर्णय ले सकता है। इस घटना को महज एक औपचारिक आमंत्रण के तौर पर नहीं देखा जा सकता बल्कि यह इस बात की स्वीकृति है कि भारत अब वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में ‘परिधि’ पर नहीं बल्कि ‘केन्द्र’ में है।
कनाडा की दुविधा?
कनाडा की सरकार पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल के दौरान भारत से संबंधों को लेकर कठिन दौर से गुजरी है। यह जगजाहिर है कि देश में खालिस्तानी तत्वों के प्रभाव ने उनकी विदेश नीति को बार-बार प्रभावित किया है। जब कनाडा को 2025 के G7 शिखर सम्मेलन की मेजबानी मिली तो कई खालिस्तान समर्थक संगठनों ने इस अवसर को अपने एजेंडे के प्रचार हेतु उपयोग करने की कोशिश की और भारत को आमंत्रित न करने की मांग की। शुरुआत में मार्क जोसेफ कार्नी प्रशासन ने भी इस दबाव के आगे झुकने के संकेत दिए, जो इस बात से स्पष्ट था कि भारत को सूची से बाहर रखा गया। लेकिन जब शेष सदस्य देशों विशेष रूप से अमेरिका, जापान, फ्रांस और जर्मनी ने भारत की उपस्थिति की आवश्यकता पर जोर दिया तो कनाडा को अपने रुख में बदलाव करना पड़ा। यह बदलाव केवल दबाव का नतीजा नहीं था बल्कि उस व्यापक कूटनीतिक यथार्थ का हिस्सा था जहां भारत की भागीदारी के बिना कोई भी रणनीतिक विमर्श अधूरा रह जाता।
G7 एजेंडा में भारत की भूमिका क्यों जरूरी?
दरअसल G7 समूह में शामिल विश्व की सात सबसे विकसित और औद्योगिक शक्तियों का एजेंडा केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं है। यह समूह जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल सिक्योरिटी, ऊर्जा सहयोग, AI, सप्लाई चेन, दुर्लभ खनिजों और वैश्विक दक्षिण के साथ साझेदारी जैसे गूढ़ विषयों पर विचार करता है। भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, सबसे बड़ा लोकतंत्र और तकनीकी क्षेत्र में उभरती शक्ति है ऐसे में स्वत: ही इन विषयों में महत्वपूर्ण साझेदार भी है। कनाडा और समूह के सदस्य अन्य देशों को यह बात समझ में आ गई कि भारत की भागीदारी सबके लिए उपयोगी है। पिछले एक दशक में भारत ने जिस तरह वैश्विक मंचों जैसे- G20, QUAD, SCO, BRICS में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है वह उसकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता और रणनीतिक क्षमता को स्पष्ट करता है। इसलिए G7 में भारत की भागीदारी कोई ‘अनुग्रह’ नहीं बल्कि उस सामूहिक समझ का परिणाम है कि भारत के बिना वैश्विक विमर्श अपूर्ण है।
कूटनीति में संतुलन और गरिमा का परिचय
कनाडा ने भारत को अंतिम समय पर आमंत्रण भेजा। सामान्यतः किसी राष्ट्राध्यक्ष द्वारा इस तरह के न्योते को ठुकराना कोई असामान्य घटना नहीं होती विशेषकर जब बीते वर्ष कनाडा ने भारत पर सार्वजनिक रूप से बेबुनियाद आरोप लगाए हों। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आमंत्रण को स्वीकार किया और कनाडा को चुनावी परिणामों पर बधाई भी दी। यह निर्णय केवल औपचारिक नहीं था बल्कि भारत की उस परिपक्व और संतुलित विदेश नीति का प्रतीक है जो व्यक्तिगत कटुता या राजनीतिक मतभेदों के बावजूद राष्ट्रीय हित और वैश्विक साझेदारी को प्राथमिकता देती है।
क्या कनाडा अब सच्चे आत्ममंथन को तैयार?
भारत की ओर से दी गई यह सकारात्मक पहल एक नई शुरुआत की संभावनाएं प्रस्तुत करती है लेकिन इस द्विपक्षीय सुधार का दूसरा पक्ष कनाडा पर निर्भर करता है। यदि कनाडा की सरकार वास्तव में भारत के साथ संबंधों को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे अपने देश में सक्रिय कट्टरपंथी और अलगाववादी समूहों पर कठोर रुख अपनाना ही होगा। PM मोदी के बयान में यह संकेत भी निहित हैं कि भारत भविष्य की साझेदारी ‘आपसी सम्मान और साझा हितों’ के आधार पर चाहता है। इसका अर्थ यह भी है कि भारत अब ‘सहनशीलता की नीति’ से आगे बढ़ चुका है और समानता आधारित साझेदारी ही उसका मूलभूत सिद्धांत होगा।
भारत की सहभागिता बिना विमर्श अधूरा क्यों?
आज G7, G20 और BRICS जैसे मंच वैश्विक बहुध्रुवीयता की वास्तविकता को दर्शाते हैं। किसी एक ध्रुवीय शक्ति के नियंत्रण से परे अब वैश्विक स्थिरता के लिए जरूरी है कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की उभरती शक्तियां भी विमर्श में सम्मिलित हों। भारत की उपस्थिति न केवल G7 के निर्णयों को अधिक प्रासंगिक और न्यायोचित बनाती है बल्कि वैश्विक दक्षिण को भी प्रतिनिधित्व देती है। यह भागीदारी अस्थायी या सैद्धांतिक नहीं बल्कि रणनीतिक और आवश्यक है।
कनाडा के सामने बड़ा अवसर
भारत को आमंत्रित करना चाहे कनाडा की मजबूरी रही हो लेकिन अब उसके पास रिश्तों को पटरी पर लाने और अपने पूर्व राजनीतिक भूलों से उबरने का अवसर है। कनाडा सरकार यदि इस अवसर का सदुपयोग करती है तो भारत-कनाडा संबंध एक नई दिशा ले सकते हैं। यह घटनाक्रम केवल भारत-कनाडा द्विपक्षीय संबंधों का मोड़ नहीं बल्कि बदलते वैश्विक सत्ता-संतुलन की झलक भी है। इस घटना से एक बार फिर ये साबित होता है कि भारत को ‘बाहर’ रखने के बजाय ‘केन्द्र’ में रखना अब ग्लोबल ऑर्डर की बुनियादी आवश्यकता है।